“268 वोटर, एक ही बाप! पनवेल में खुला लोकतंत्र का ‘फैमिली पैक’ स्कैम”

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

महाराष्ट्र के पनवेल में चुनावी सीज़न में जो खुलासा हुआ है, उसे देखकर तो सीरियल वाले भी शर्मा जाएं। शेतकरी कामगार पार्टी के स्थानीय नेता अरविंद म्हात्रे जब मतदाता सूची की जांच कर रहे थे, तब उन्हें ऐसा ‘फैमिली पैक’ मिला — जिसकी उन्हें भी उम्मीद नहीं थी।

जी हां!
268 वोटर… एक ही पिता!
और पता?
न घर, न द्वार, न पहचान — बस वोट!

कहते हैं कि लोकतंत्र में सब बराबर होते हैं, पर ये तो डुप्लीकेट वर्ज़न निकले।

UP–MP के युवाओं का ‘पनवेल कनेक्शन’ — कनेक्शन सिर्फ लिस्ट में, जमीन पर नहीं

जांच में सामने आया कि इन 268 नामों में शामिल अधिकांश युवक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। पनवेल में उनका रहन-सहन, किराये का घर, नौकरी — किसी से कोई वास्ता नहीं।

मतलब वोट देने आओ…और फिर दिसअपियर हो जाओ…जैसे बॉलीवुड के वन-टाइम विलेन।

म्हात्रे ने आरोप लगाया कि “लोकतंत्र का खुलेआम दुरुपयोग हो रहा है, बाहरी लोगों को जोड़कर चुनाव को प्रभावित किया जा रहा है।”

MNS की एंट्री — मैदान में उतरेंगे, वोट नहीं डालने देंगे

जैसे ही खबर वायरल हुई, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) की एंट्री हुई — और एंट्री भी विलन नहीं, एक्शन हीरो वाली। मनसे ने X पर लिखा, “अगर ये फर्जी 268 वोटर मतदान करने आए, तो मनसे कार्यकर्ता मैदान में उतरकर रोकेंगे।”

उन्होंने पनवेल तहसीलदार मीनल भोसले से जवाब भी मांगा और चेतावनी दी — “अगर चुनाव आयोग के किसी कर्मचारी की भूमिका मिली, तो कार्रवाई होगी।”

मनसे का मूड देखकर ऐसा लगा कि अब बैलेट बॉक्स नहीं, ग्राउंड रिपोर्टिंग भी हाई-वोल्टेज होगी।

विपक्ष का दावा — मुंबई में 11 लाख डबल वोटर!

विपक्ष पहले ही आरोप लगा चुका है कि सिर्फ मुंबई में 11 लाख डबल वोटर्स हैं।

अब पनवेल कांड के बाद राजनीति में हलचल और तेज हो गई है। सवाल एकदम पिन-पॉइंट क्या लिस्ट में सुनियोजित फर्जीवाड़ा हुआ? क्या प्रशासन शामिल है? क्या ये चुनाव प्रभावित करने की सोची-समझी साजिश है?

सोशल मीडिया पर जनता का मूड साफ है — “268 नाम नहीं… लोकतंत्र का इम्तिहान है।”

अब निगाहें चुनाव आयोग पर — ‘लिस्ट शुद्ध होगी या नहीं?’

दोस्तों, अब पूरा महाराष्ट्र एक ही सवाल पूछ रहा है क्या चुनाव आयोग फर्जी वोटरों को हटाएगा? या फिर 268 लोगों का ‘कॉमन डैड’
मतदान केंद्र पर भी एंट्री मार जाएगा?

जनता इंतजार कर रही है — क्योंकि बात सिर्फ पनवेल की नहीं, लोकतंत्र की साख की है।

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